Saturday, November 21, 2009

zakham

अपनी आंखों में सीने के
ज़ख्म छुपाये बैठे हैं
हम ने कभी इक सच बोला था
होठ जलाए बैठे हैं........

लम्हा लम्हा किरचे किरचे
दिल हुआ है चक मगर
बुझी राख में भी शोलों की
आग दबाये बैठे हैं.........


सूनी आँखें सूने अरमां
सूनी यादें सूना दिल
वो आयें तो रौनक हो
उम्मीद लगाये बैठे हैं ........

No comments:

Post a Comment