Saturday, November 21, 2009

parwaaz

उनकी हंसी में खो गयी
सदा मेरी आवाज़ की
हमें नही आती थी
बाजीगरी अल्फाज़ की

नाज़ था बेशक हमें
अपने किताबी इल्म पे
पढ़ न पाये शौखियाँ
उनके मिजाज़ की

एक क़तरा खूं न आया
तीर दिल के आरपार
क्या बताएं बात उनके
क़त्ल के अंदाज़ की

पर नही पर हौसला
बुलंद आसमान सा
रंग लाएगी हमारी
कौशिशें परवाज़ की

1 comment:

  1. अति सुन्दर,कलम में धार है,शब्दो की तलवार है.तू लहू का रंग ना देख..कोई मरने को बेकरार है।...... कानून की बोझील तहरीरो के बीच बेहतर कविताए.....वाकई खूबसुरत।
    लक्ष्मण राघव

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