Wednesday, June 22, 2011

इक कागज़ की नाव पर कल्,
मैने कुछ् तेरे नाम लिखा था,
और छोडा था उसे उस पानी मैं ,
जो बहा था बारिशों में मेरे घर से तेरे दर की ओर.
दूर तक नज़रों ने पीछा भी किया था उसका ,
सुबह उठा तो पता चला कि वो सपना था....
बाहर देखा तो सडकें लबालब थी पानी से.
हिस्ट्री की कोपी से पन्ना भी फटा मिला.
एक बार दरवाज़े से बाहर देखना,
मेरा सपना बह कर आया हो तो सुखा कर रख लेना !!!