उनकी हंसी में खो गयी
सदा मेरी आवाज़ की
हमें नही आती थी
बाजीगरी अल्फाज़ की
नाज़ था बेशक हमें
अपने किताबी इल्म पे
पढ़ न पाये शौखियाँ
उनके मिजाज़ की
एक क़तरा खूं न आया
तीर दिल के आरपार
क्या बताएं बात उनके
क़त्ल के अंदाज़ की
पर नही पर हौसला
बुलंद आसमान सा
रंग लाएगी हमारी
कौशिशें परवाज़ की
अति सुन्दर,कलम में धार है,शब्दो की तलवार है.तू लहू का रंग ना देख..कोई मरने को बेकरार है।...... कानून की बोझील तहरीरो के बीच बेहतर कविताए.....वाकई खूबसुरत।
ReplyDeleteलक्ष्मण राघव