हमने अपने जीने के कुछ यों अंदाज़ निकाले हैं,
होठों पे लतीफ़े रखते हैं माना की जुबां पर छाले हैं,
किस्मत ने तो कोई भी कसर न बाकी छोड़ी है,
याद हैं तेरी जो मुझको इस मुश्किल में संभाले हैं,
एक अधखिला ग़ुमचा भी रास न आया ज़ालिम को,
अरसे से कुछ गुलफरोश अपना डेरा डाले हैं,
मैं तो रुसवा ठहरा लेकिन वो तो इज्ज़त वाले हैं,
मेरे साथ क्यों दुनिया वाले उनका नाम उछाले हैं,
इक उम्मीद कहीं बाक़ी है बिना चाँद की रात में भी
कुछ लम्हों की रात है फिर उजाले ही उजाले हैं
जब से उसने ख़ाना ए दिल छोड़ा है वीरानी है,
ग़र्द जमी है फ़र्श पे और दीवारों पर जाले हैं ।।
Wednesday, August 25, 2010
मुक़म्मल
जब तक रहेगी मेरी ये जान मुक़म्मल,
मुझ पर रहेगा तेरा एहसान मुक़म्मल,
साथ में हो तुम तो जहान साथ है,
गोया मेरा हो गया जहान मुक़म्मल,
रोज़ ए संगसारी ए आशिक हुआ है तय,
माशूक़ वाक़ये से है अनजान मुक़म्मल,
ढूंढोगे मुझको कैसे मैं ग़ुम अगर हुआ,
मेरी नहीं है कोई भी पहचान मुक़म्मल,
भीड़ में कुछ सर थे कुछ हाथ पाँव थे,
नज़र न आया एक भी इंसान मुक़म्मल.
मुझ पर रहेगा तेरा एहसान मुक़म्मल,
साथ में हो तुम तो जहान साथ है,
गोया मेरा हो गया जहान मुक़म्मल,
रोज़ ए संगसारी ए आशिक हुआ है तय,
माशूक़ वाक़ये से है अनजान मुक़म्मल,
ढूंढोगे मुझको कैसे मैं ग़ुम अगर हुआ,
मेरी नहीं है कोई भी पहचान मुक़म्मल,
भीड़ में कुछ सर थे कुछ हाथ पाँव थे,
नज़र न आया एक भी इंसान मुक़म्मल.
मैं और तुम
हर शाम सुहानी होती है,
हर रात दीवानी होती है,
जब साथ मेरे तुम होते हो,
कुछ और कहानी होती है,
खुशबू के दरीचे खुलते हैं,
फूलों पे रवानी होती है,
नस नस में दरिया बहता है,
क़तरे में रवानी होती है,
साँसों में सुलगते शोलों से,
इक आग बुझानी होती है,
जितना हिज्र हो उतनी ही,
शराब पुरानी होती है.
हर रात दीवानी होती है,
जब साथ मेरे तुम होते हो,
कुछ और कहानी होती है,
खुशबू के दरीचे खुलते हैं,
फूलों पे रवानी होती है,
नस नस में दरिया बहता है,
क़तरे में रवानी होती है,
साँसों में सुलगते शोलों से,
इक आग बुझानी होती है,
जितना हिज्र हो उतनी ही,
शराब पुरानी होती है.
शबनम और केसर
राह कठिन है कंकड़ पत्थर,
उलझे दामन चुभते नश्तर,
सूखे सूखे मुरझाये से,
शबनम शबनम केसर केसर,
अब तो मौला पानी दे दे,
आग लगी है बाहर भीतर,
इश्क़ में हमने क्या पाया है,
थोथे वादे पैने खंज़र,
कभी तो मीठा होगा पानी,
सौ दरिया और एक समंदर .
उलझे दामन चुभते नश्तर,
सूखे सूखे मुरझाये से,
शबनम शबनम केसर केसर,
अब तो मौला पानी दे दे,
आग लगी है बाहर भीतर,
इश्क़ में हमने क्या पाया है,
थोथे वादे पैने खंज़र,
कभी तो मीठा होगा पानी,
सौ दरिया और एक समंदर .
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